7 तरह का होता है ITR फॉर्म, जानिए आपके लिए कौन सा जरूरी
7 तरह का होता है ITR फॉर्म, जानिए आपके लिए कौन सा जरूरी |
आयकर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2018 है, इसमें देरी करने पर आपको जुर्माना भी देना पड़ सकता है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2018-19 (वित्त वर्ष 2017-18) के लिए आयकर रिटर्न के बाकी सभी फॉर्म अपने ई-फाइलिंग पोर्टल पर उपलब्ध करा दिए हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने पिछले पांच अप्रैल को इन फॉर्म्स की अधिसूचना जारी की थी। विभाग ने आयकर रिटर्न के सभी फॉर्म पोर्टल पर जारी होने की जानकारी एक बयान के जरिये दी है।
सहज फॉर्म में क्या कुछ हुए बदलाव?
आइटीआर-1 सहज फॉर्म वेतनभोगी करदाताओं के लिए है। सहज फॉर्म 50 लाख रुपये तक वेतन पाने वाले करदाताओ को भरना होगा। सिर्फ एक आवासीय संपत्ति और एफडी या आरडी से अतिरिक्त होने पर वे इस फॉर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस साल आइटीआर-1 यानी सहज फॉर्म में कर योग्य भत्तों, वेतन के रूप में लाभ और अतिरिक्त सुविधाओं की कीमत का ब्यौरा भी देना होगा। इस बार सभी वेतनभोगी करदाताओं को वेतन का ब्रेकअप अनिवार्य रूप से देना होगा। आयकर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2018 है, इसमें देरी करने पर आपको जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
7 तरह का होता है आईटीआर फॉर्म, जानिए आपके लिए कौन सा भरना जरूरी:
- ITR-1: आईटीआर-1 फॉर्म को सहज फॉर्म भी कहा जाता है। 50 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वाले ऐसे करदाताओं को यह फॉर्म भरना होगा जिन्हें सैलरी, पेंशन, एक घर या अन्य स्रोतों से आय होती है।
- ITR-2: यह फॉर्म 50 लाख से ज्यादा की सालाना कमाई वाले ऐसे करदाताओं को भरना होगा जिन्हें कैपिटल गेन के रुप में, किसी फर्म में पार्टनर के रूप में, विदेश से और कृषि (5000 रुपये से ज्यादा) से आय होती है।
- ITR-3: बिजनेस और किसी पेशे से आय प्राप्त करने वाले ऐसे करदाओं को यह फॉर्म भरना होता है जिनकी सालाना आय 50,000 रुपये से ज्यादा की होती है।
- ITR-4: इसे प्रिजम्पटिव बिजनेस करने वाले करदाताओं को भरना होता है जिन्हें सेक्शन 44AD, 44ADA और 44AE के अंतर्गत आय प्राप्त होती है।
- ITR-5: यह फॉर्म फर्म, एलएलपी, एओपी और बीओआई से आय प्राप्त करने वालों को भरना होता है।
- ITR-6: ये ऐसी कंपनियों को भरना होता है जो सेक्शन 11 के अंतर्गत क्लेम नहीं कर रही होती हैं।
- ITR-7: यह उनको भरना होता है जिन व्यक्तियों या कंपनियों की आय सेक्शन 139 (4A), सेक्शन 139 (4B), सेक्शन 139 (4C) और 139 4 (D) के अंतर्गत आती है।
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